आज से देश के हर बच्चे को अपने घर पड़ोस में निशुल्क प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार होगा। केंद्र व राज्य सरकारों का यह दायित्व होगा कि वे 6 से 14 साल की उम्र के हर बच्चे को प्रवेश के लिए पर्याप्त स्कूल, शिक्षक तथा अन्य जरूरी संसाधन उपलब्ध कराए।
देश में शिक्षा के अधिकार कानून (आरटीई) को लागू करने के बाद सरकारों की जरूरी संसाधन जुटाने के लिए तीन साल की मोहलत दी गई थी, जो पूरी हो गई है, लेकिन तमाम उपाय अब भी अधूरे हैं। स्कूलों में 11 लाख से ज्यादा शिक्षकों के पद खाली हैं तो आठ लाख से ज्यादा शिक्षक अप्रशिक्षित हैं। हजारों निजी स्कूलों को अभी तक मान्यता नहीं मिली है, जिन्हें नए कानून के अनुसार अब बंद करना होगा।
स्कूली शिक्षा को संवैधानिक अधिकार के लिए वर्ष 2002 में 86वें संविधान में अनुच्छेद 21-ए जोड़ा गया था। तब से दस साल गुजर गए। पहले सर्वशिक्षा अभियान चलाया गया। फिर राइट टू एजूकेशन बिल के माध्यम से इस अधिकार को अप्रैल 2010 में लागू किया गया। बच्चों को शिक्षा के अधिकार का प्रस्ताव तीन साल के लिए स्थगित रखा गया था।
सबसे बड़ा संकट देश के उन बड़े राज्यों के सामने है जो पहले से शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े हुए थे। इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ जैसे राज्य शामिल हैं।
पूरे देश में सरकारी तथा सहायता प्राप्त स्कूलों में 11.87 लाख शिक्षकों के पद खाली हैं। इनमें से तीन लाख से ज्यादा सीटें अकेले यूपी में खाली हैं।
आरटीई में सभी शिक्षकों का प्रशिक्षित होना जरूरी है। देश में 8.6 लाख शिक्षक अप्रशिक्षित हैं। केंद्र सरकार ने फिर से 13 राज्यों को अप्रशिक्षित शिक्षकों की भर्ती करने की छूट दे दी है। हर स्कूल में मैनेजमेंट कमेटी बनाने का प्रस्ताव है। आठवीं तक बच्चों को फेल न करने का फैसला तो लागू हो गया है, लेकिन बृहत्तर एवं सतत मूल्यांकन प्रणाली (सीसीई) का प्रारम्भ नहीं किया जा सका है।
क्या है प्रावधान
छह से 14 साल के बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान
बच्चों को फीस नहीं देनी होगी, न ही यूनिफॉर्म, किताबें या ट्रांसपोर्टेशन पर खर्च करना होगा
हर 60 बच्चों को पढ़ाने के लिए कम से कम दो ट्रेंड शिक्षक रखना होगा
निजी शैक्षणिक संस्थानों में गरीब परिवारों के बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित
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